Sunday, January 1, 2012

भारतेंदु श्रीवास्ताव्
64.Longswood Drive
Toranto,ontario
canada,MIV3A3
sribhartendu@yahoo.com
416 291 5957
मेरा डॉ .जयजयराम आनन्द  से २००३ मेंपरिचय  हुआ ,जब उनका डेट्रायट से प्रो. रघुवीर प्रसाद विक्टोरिया के संदर्भ से फोन आया और उन्होंने बताया कि हम लोग भोपाल से आये हैं और अपने बेटे संदीपके पास प्रवास पर हैं इलाहाबाद सेएम् .एड .किया है,मैनपुरी के निबासी हैं ` .उनके मुख से मैनपुरी ,इलाहाबाद और भोपाल कानाम सुनकर आत्म्मीय ता के भाव जाग उठे .भोपाल में मेरे मौसेरे भाई पोलिस में थे और बहीं रह रहें हैं ,इलाहाबाद कि मेरी धर्मपत्नी है ,डॉ रघुवीर प्रसाद कीपत्नी डॉ शशि की घनिष्ट ,मैनपुरी में मेरे पिताजी स्टेशन मास्टर थे अतः मैंने क्रस्चियन  स्कूल में पढ़ाई की डॉ आन्नद भी उन्ही दिनों गवरर्मेंट इंटर कालिज के सर्व्श्रेष्ठ छात्रों mने जाते थे और मैं भी अपनी कक्षा में प्रथम आता था फिर तो आये दिन फोन  से चर्चा होने लगी .उन्होंने अमरीका और कनाडा की साहित्यिक गति विधियों से जुड़ने की बात कही तो मैनें उन्हें विश्वा का पता दिया जिसमें उन्होंने रचनाएं भेजी जो प्रकाशित हुईं .बाद में मैनें टोरंटो में होने बाले साहित्यिक कार्यक्रमों   की सूचना दी तो वे अपने बेटे व् पत्नी के साथ नियाग्रा फाल तथा टोरोंटो कनाडियन टावर की सैर करते  हुए मेरे निवास पर पधारे .हम दोनों उनका  स्वाग् त कर अविभूत थे .कुछ समय बाद टोरंटो के भारतीय प्रवासी  साहित्यकार भी आगये  सबसे घुलमिलकर घर परिवार देश साहित्य की चर्चा हुई और हम सब लोग राधा कृषण मंदिर पहुचे .
साहित्यिक  कार्यक्रम स्वर्गीय डॉ ब्रजराज कश्यप,डॉ भारतेंदु श्रीवास्तव और डॉ आनन्द के विशिष्ट आथित्य में शुरू हुआ .पहले लोकल साहित्यकारों ने काव्य पाठ किया .जब संचालिका श्रीमती कश्यप ने डॉ आनन्द का परिचय  दिया तो सभी ने करतल ध्वनि से स्वागत किया .डॉ कश्यप ने उनकी सधः प्रकाशित  सकलन ,घर के अन्दर  घर,का लोकार्पण किया फिर उनसे काव्य पाठ का अनुरोध क्या गया उन्होंने परिचय देते हुए कहा :
में व्यथित हूँ नहीं स्वयं  की व्यथा से /मैं तृषित हूँ नहीं स्वयं की तरशा  से
धरती के जन जन का व्यथा गीत गाता हूँ /एक एक आह में नवीन गीत पाताहूँ
खुशी में श्रोतायों ने खूब तालियाँ बजायीं पर जब उन्होंने दोहों की शुरूआत की फिरतो सभागार तालियों की गडगडाहट  से गूज उठा :
टोरंटो में जो सूना भारत का संबाद/मेरे दोहे कर रहे उन सबका अनुवाद
मत सोचो कैसा लगा ,टोरंटो में आज /हँसी खुशी ने रख दिया मेरे सर पर ताज
जीवन भर भूलूँ नहीं टोरंटो की शाम/स्वर्ण  अक्षरों में लिखा मेरा सबका नाम
मन में मेरे बस गया टोरंटो का नाम /सचमुच में एसा लगा स्वर्ग सुखों का धाम
उन्होंने नियाग्रा फाल्स पर जो दोहे पढ़े वह उनके दोहा संग्रह ,'अमरीका में आनंद 'के पृष्ट २७-२८  पर अंकित हैं जो उनके बेटे संदीप ने भेजी  .काव्यपाठ के बाद वे डेट्रायट चले गए.
बीच बीच में तीज त्योहारों पर इंटरनेट पर संपर्क होता रहा .अभी वे पुनः अमरीका कनाडा प्रवास पर हैं आजकल साईट जॉन में सितम्बर से पवास पर हैं और उन्होंने बताया की उनपर हिंदी की पत्रिका साहित्य सागर विशेषांक निकाल रही है अतः उनके आग्रह  पर यह सब लिखते हुए अपार ख़ुशी का आनन्द लूट रहाहूं .
मुझे कहने में गर्व हो रहाहै की दूर रहकर भी अपने मित्रों को भूलते नहीं ,वे एक सफल कवी लेखक हैं .दोहे  लिखने में वे सिद्ध हस्त है जो उनके दोहा संग्रहों :बूद बूँद आनन्द ,अमरीका में आनन्द ,हास्य योग आनन्द ' से सिद्ध होता है.
अंत मुझे ,उनके अपने संपर्क पर गर्व है .जब जब उनसे बात होती है तो मैनपुरी ,इलाहाबाद,भोपाल और भारत की यादें ताजा हो जाती हैं .उनके काव्य सृजन व् साहित्यिक  योगदान के लिए बधाई देना चाहूंगा .
भारतेंदु श्रीवास्तव
टोरंटो
        

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