Sunday, January 15, 2012

डॉ .आनंद के दो नवगीतों से गुजरने पर बचपन की यादें ताजाहो गईं .घर दालान की अंतिम पंक्त्तियाँ मन को छू गईं .दूसरा गीत लोकजीवन की सच्चाइयों का बखान करता है .धन्यवाद.
शिरीष
४५४६,st Elmo Dr.Los ngeles CA9009

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