Friday, January 27, 2012

डाक्टर आर .डी.वर्मा प्रोफेसर एमिरितास [फिजिक्स ]
न्यू ब्रुन्सविक यूनिवर्सिटी ,कनाडा
५०६-४५७-०२५७




जब मुझे ज्ञात हुआ कि हिंदी साहित्य की प्रमुख पत्रिका साहित्य सरोवर /------------------का फरबरी २०१२ का
विशेषांक डाक्टर जय जय राम के साहित्यिकजीवन   को समर्पित है तो मुझे बेहद ख़ुशी हुई .मुझे इस बात का गर्व है कि समाज में कोई ऐसा भी मित्र है जिसे मैं एक लम्बे अरसे से जानता हूँ और जिसकी मित्रता उसके विद्धार्थी  जीवन से मेरे मानस पटल पर रची -बसी है .मेरे लिए यह महान ख़ुशी की बात है कि उनके विषय में मुझे अपना द्रष्टिकोण रखने का सुअवसर मिला ।
डाक्टर जय जय राम मुझसे कुछ साल छोटे हैं परन्तु हम दोनों की जीवन रेखा बिलकुल समानांतर बही यद्यपि उसकी दिशाएँ अलग अलग रहीं । हम दोनों ही ऐसे सामान्य किसान परिवार से हैं जिनमें कोई भी भविष्य की राह  दिखाने  बाला नहीं था .अपने भाग्य निर्माण की राहें अपने आप खोजीं क्योंकि हम मैथिलीसरन  गुप्त जी की पक्तियों से अनुप्राणित थे :स्वावलम्ब की एक झलक पर न्योछवर कुबेर का कोष ' उन्होंने अपनी मात्रभूमि , मात्रभाषा हिंदी,बालसाहित्य तथा शिक्षा जगत की सेवा की और उन क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किये जबकि मैंने प्रकृति के रहस्यों की खोज में दुनिया की खाक छानी .मुझे दो- दो नोबुल पुरूस्कार विजेतायों के साथ हाथ मिलाकर परमाणुओं और मोलेक्युल्स के अभेध्य रहस्यों को खोजने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
मुझे अच्छी तरह याद है जब डाक्टर जय जय राम मुझसे सन १९५७-५८ में अलीगढ में मिलने आये तो मुझे अपनी प्रथम पाण्डुलिपि, 'दरिद्रता के अंचल से महान विभूतियाँ ' दिखाई तो सुचमुच मैं आश्चर्य चकित हुआ की इतनी सी छोटी आयु में इतना महत्वपूर्ण लेखन .उन्होंने अपने कनाडा अपने बेटे के पास सैंट जॉन प्रवास में बताया की उसे राजपाल एंड संस दिल्ली ने 'प्रेरणात्मक जीवनियाँ ' शीर्षक से प्रकाशित की है उन्होंने अपने सेवाकालीन अवधि में शिक्षा एवं शिक्षा मनोविज्ञान सम्बन्धी अनेक कृतियों का सर्जन किया जिनमें ,'विश्व के महान शिक्षाशास्त्री 'का पांचवां संस्करण निकल चुका है .ध्यातव्य है की उन्होंने काव्य जगत को नौ संकलन की अनूठी धरोहर सौपी है जिनमें से अधिकाँश को मुझे देखने का अवसर उनके साथ भोपाल ठहरने पर मिला उनके हाल ही के प्रकाशित बाल साहित्य के संकलनो और उनके बाल गीतों को सुनकर मैं और मेरी धर्म पतिनी मधु वर्मा मोहित हो गए .बालजीवन से सम्बंधित कवितायें अति सरल और बालकों के गले आसानी से उतर जाती है । मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ और मुझे गर्व है की उन्हें उनके प्रशंशनीय कार्यों के लिए अनेक राष्ट्रीय पुरूस्कार एवं सम्मान मिलें और अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थायों ने भरपूर सम्मान दिया ।
मैं उनके परिचय और सानिध्य को गौरव और अपने सौभग्य का प्रतीक मानता हूँ .मेरा उनके जोखिम भरे साहसिक जीवन की पगडंडियों से उनके विद्यार्थी जीवन से ही निरंतर संपर्क में रहा हूँ .उनकी जीवन यात्रा एक किसान के खेत से शुरू होकर भारत के अनेक भागों की भूलभुलैयों से गुज़री और उनपर सफलता और अपने नाम के अनुकूल अमित आनंद की अजश्र धारा बहाई वे अपने गाँव -समाज के लिए सर्वप्रथम नायक हैं जिन्होंने यह सिद्ध करके यह दिखा दिया की पैसे का अभाव और दूसरे के कधों के टेके की वैशाखी के न होने पर भी जीवन में सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने से कोई रोक नहीं सकता यदि मन में संजोये सपनों को सजाने की प्रवल इक्षा और सच्ची लगन हो ।
मैं उनकी दीर्घ आयु और सुखी जीवन की कामना करता हूँ ताकि वे साहित्य जगत विशेषकर बाल साहित्य को अपने बालगीतों की अमूल्य सौगात सौंप सकें भावी बाल गोपालों के कोमल उरों में हास्य का वीज बो सकें ।
हस्ताक्षर :राम .डी .वर्मा
प्रोफेसर राम डी वर्मा , एम् .ससी [फिजिक्स], पी ,एचडी ।
हिंद रत्न १९९३
१९५, कोलोनिअल हाईट्स ,
फ्रिदिक्सन ,एन .बी .ई ३बी५ एम् २ कनाडा


उमेश रश्मि रोहतगी
बी.एससी ,बी .टेक.[आनर्स ] ऍम .एस।
सामाजिक कार्यकर्ता,
२४१६१,नीलम ड्राइव,नोवी ,म .आई.४८३७५ [ यु स ए]
इ मेल : फोन २४८-४७१-५७८६
[क्रप्या अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें ]

मेरा परम सौभाग्य है कि पिछले दस वर्षों से भी अधिक से मैं
डाक्टर जय जय राम आनंद को जानता हूँ .ये भी मेरे लिए गौरव का विषय है कि उनके द्वारा रचित शिक्षा एवं साहित्य के अनेक ग्रंथों में से काव्य के नौ संकलनों में से अधिकाँश को पढ्ने का सुअवसर मिला जो जन सामान्य
सहज सरल हिंदी भाषा में हैं और उन्हें हर पाठक अपने जीवन से जुड़ा पायेगा .वे पढ़े लिखे मनीषी हैं जिसकी अमिट छाप उनके मध्य प्रदेश ,गोवा दमन दीव[ केंद्र शासित राज्य ] और गोवा राज्य के विद्यार्थियों ,शैक्षणिक एवं प्रशासनिक क्रियाकलापों पर है .उनका गहन अध्ययन ,भ्रमन्शीलता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं । वे बड़े ही स्नेह शील हैं .मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उनसे थोड़े समय कि भेंट से ही हर कोई प्राभित हो जाता है .मेरे लिए यह और खुद्किस्मती कि बात है कि वे भी मेरी तरह उत्तरप्रदेश के निवासी हैं .अत:,उन्हें भलीभांति समझने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई .वे अनेक पुरुस्कारों से पुरुस्कृत है और मैं यह कह सकता हूँ कि वे पुरूस्कार उनके कारण गौरवान्वित हुए हैं क्योकि वे स्वयं उनके सुपात्र ही नहीं अपितु उन जैसे और अधिक पुरुस्कारों के हकदार हैं .मैं उनसे अधिक और किसी को अच्छा नहीं पाता कि जिसके लिए मैं कुछ लिखूं .वे बड़े विनोदप्रिय हैं और उनसे किसी भी विषय में बात करना आनद दायक है.
वे पारिवारिक जीवन के हिमायती हैं .उनकी पाँचों संतानें सुयोग्य एवं सम्मानजनक पदों पर पदासीन हैं । दो अमेरिका बेटी ह्यूस्टन ,सबसे छोटा बेटा लासंजेलीस में ],मझला बेटा सैंट जॉन कनाडा में तथा सबसे बड़ा बेटा व् उससे छोटी बेटी भारत में हैं .तीन बेटों में सबसे छोटा बेटा अभी भी अविवाहित है .मेरी हार्दिक कामना है यदि मेरी बेटी होती तो मै उस परिवार में दे देता ।उन्हें मित्र बनानें में देर नहीं लगती जिसका प्रमाण यह है की विश्व के इस भाग ,विशेषत:,मिसिगन जहां वे कुछ महीनों ही रहे और उसमें ही उनके अनेक मित्र और प्रशंसक बन गए।
वे हिदी की पत्र -पत्रिकायों में अमेरिका की हिंदी जगत ,विश्वा और भारत की अनेक प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकायों में रचनाएं भेजते रहते हैं और बराबर प्रकाशित होती हैं .इसके अतिरिक्त वे अनेक समूहों यथा एक कविता @ याहूग्रौप्स.कॉम ,अनुभूति -हिंदी-ओर्ग ,स्वर्ग्विभा आदि से भी जुड़ें हैं उनका स्वयम काकवितमेअनन्द्ब्लोग्स्पोत. कॉम भी है
मैं उन्हें किसी भी अलन्क्र्ण के लिए अनुशंसित करने में कभी भी हिचकूंगा नहीं ।
उमेश रश्मि रोहतगी
दिनांक :सोमवार सितम्बर :१२.२०११

Sunday, January 15, 2012

डॉ .आनंद के दो नवगीतों से गुजरने पर बचपन की यादें ताजाहो गईं .घर दालान की अंतिम पंक्त्तियाँ मन को छू गईं .दूसरा गीत लोकजीवन की सच्चाइयों का बखान करता है .धन्यवाद.
शिरीष
४५४६,st Elmo Dr.Los ngeles CA9009

Sunday, January 8, 2012

Quebec City


क्यूबेक शहर जैसा देखा !
क्यूबेक राज्य कनाडा के दस राज्यों में एक महत्वपूर्ण राज्य है और अनेक द्रश्तिकोनों से महत्वपूर्ण है .
पूरे देश में केवल इसी राज्य की कार्यालीन भाषा फ्रेंच है .क्षेत्रफल और जनसंख्या के मान से दुसरे स्थान और शिक्षा की गुणवत्ता के अनुसार प्रथम स्थानपर है .उद्योग धंधों का केंद्र क्यूबेक शहर और मांट्रियल के बीच लारेंस नदी के किनारे है .इस राज्य में सबसे अधिक नदियाँ ,सबसे ऊंचे पहाड़ और भूमि की रचना अन्य राज्यों से भिन्न है.यहा वसंत ,ग्रीष्म ,पतझड़ और ठण्ड के चार मौसम होते हैं जिनमें सबसे कठिन ठण्ड का मौसम होता है और कभी कभी क्यूबेक शहर में पांच मीटर तक बर्फ जम जाती है .क्यूबेक शहर इस प्रदेश की राजधानी है .इस शहर के सैर सपाटे के लिए हम लोग पत्नी प्रेमलता और बेटे संदीप के साथ अपने बाहन से सैंट जॉन से ७०० किलोमीटर की दूरी तय करके लगभग ४.३० बजे शाम वहां दिसम्बर १२,२०११ के ३.३०पहुँच गए और सामान हॉवर्ड जोनसन में रख सैर -सपरे पर निकल पड़े .
सबसे पाहिले हम लोग डावन-टाउन की और चल पड़े .लारेंस नदी के लम्बे चौड़े पात और उस पर बनें
आने जाने बाले लोहे से बने पुलों की ओर हम लोगों का ध्यान गया .हमारे बेटे संदीप ने गाइड का उत्तरदायित्व निभाया .डाउन टाउन के भवन -दूकानें सब जगर मगर हो रहे थे .चौक में क्रस्मस ट्री की सजावट दर्शनीय थी
थी.भान के भवन तथा दूकानें फ़्रांस की यादें ताजा कर रहीं थी .लगभग ४.०० घंटे घूमने के बाद हम लोग होटल में बापिस आ गए और रात भर चैन की नीद सोये .
होटल के रेंट में रिफ्रेशमेंट शामिल था .हम लोगों ने हैवी नाश्ता किया और आनन् फानन तैयार हो दिसंबर 13
१३ २०११ को क्यूबेक अक्वेरियम की ओर चल पड़े जो मुख्य बाज़ार के पास है और १६ हेक्टेयर [४० एकड़ ]में फैला है जिसमें १०,००० जानवर ३०० जातियों के दर्शकों के आकर्षण के केंद्र बिंदु हैं .इसकी स्थापना १९५५ में हुई.सबसे पहिले बायोलाजिकल सेंटर बना जिसके लिए २३०,००० गैलन ताज़ा पानी और ३२,००० गैलन नमकीन पानी क्रमशः सैंट चार्ल्स झील और सैंट लारेंस नदी से लाया गया .इसके बाद अन्य विभाग बन कर तैयार हुए .हम लोगों ने भयानक समुद्र ,तटीय क्षेत्र के भाँति भाँति के जानवर ,मीठा और नमकीन पानी और मैरीन बायोलोजी कल विभाग का मज़ा लिया .बाहरी विभागों में सैंट लारेंस कौरीदर में ऐसे ऐसे सांप ,चिड़ियाँ ,पौधे और विचित्र कीड़े मकोड़े देख देख हम लोग दांत तले उंगली दबा रहे थे .
आर्कटिक विभाग में आर्कटिक क्षेत्र में पाए जाने बाले जानवर हार्पसील ,वालरूस,पोलर बियर आदि ने ध्यान खीचा .खाना खिलाने के समय के जानवरों के खेल तमाशों ने दर्शकों का ध्यान खींचा .
कांच के अन्दर दो बालरूस थे जब उन्हें फेक कर खाना खिलाया जाता था तो वे उसे गप्कते थे तथा तरह तरह के खेल दिखाते थे बच्चों की उछल कूद माता पिताके लिए आनंद का स्रोत थी ,इसी तरह चार हार्प शीलों की
उछलकूद पानी से बाहर आकर लेट कर नमस्कार करना आदि देख देख सैलानी विमोहित थे .बच्चे तथा सभी दर्शक तालियाँ बजा बजा कर खुश हो रहे थे .उनके खेल तामाशों को देख कर २००३ में शिकागो में देखे
हेल मछलियों के कारनामें याद आगये .उनकी कलाबाजियां देख कवी मन गुनगुनाने लगा :
जो हम सबने देखे जीवजन्तु
भाँति भाँति के जीवजन्तु हैं /रंग बिरंगे रंग
बच्चे बूड़े जो भी द्र्खें /रह जाते हैं दंग
और भूल जाते हैं किन्तु परंतु
भोजन देना या सिखलानें की /होंअद्भुत घड़ियाँ
नांचें भोजन के लालच में /चारों सील मछलियाँ
बजा तालियाँ होते मंत्रमुग्ध
एक्वेरियम के लाज में ही भोजन करके हम लोग आदिबासियों हुरोन के गाँव वान्देके की ओर चल पड़े .रास्ते में चारों ओर बर्फ ही बर्फ ,हम लोगों ने इतनी बर्फ कभी न देखि थी .छोटे छोटे शंकु आकार के घर और अधिकाँश के सामने कपडे के बने ग़ैरिज जीवन में पहली बार देखे .भूलते भटकते गाँव पहुंचे .गाइड के साथ उनके इतिहास ,रहन सहन ,संस्कृति आदि को समझा बूझा .इनका इतिहास लोजियाँ न वे और सैंट लारेंस खाड़ी के बीच के मैदानों ,झीलों और पहाड़ों से जुदा है ये लोग कुशल किसान ,शिकारी,व्यापारी और लड़ाकू होते हैं . पूरे गाँव का नाम रोरेक है .इसकी नींव १६९७ में हुई .पूरे दिन सैर सपाटे के बाद चैन से होटल में सोये .
दूसरे दिन १४.१२.२०११ को सामान के साथ क्युवेक के म्यूजियम की ओर कदम बढाए .क्युवेक राज्य में लगभग ४०० म्यूजियम हैं .क्युवेक शहर का म्यूजियम मूसीद्ला सिविलिजेशन ६०० वर्गमीटर क्षेत्र में रायल पैलेस के आस पास स्थित है जो क्युवेक के भुत वर्तमान और भविष्य के बारे में जानकारी देता है .हम लोगों ने बिभिन्न विभागों में संग्रहीत वस्तुएं ,अभिलेख देखे वे सब क्युवेक व् रोम के संबंधों की रोचक जानकारी देते हैं. कनाडा में रेडियो के विकास की कहानी कहता विभाग विज्ञान विभाग में जानकारी का विशाल भण्डार देख देख हम चकित थे .हम लोग चकित थे की अनेक माँ बाप अपने अपने दुध्मुहें लाडलों को लेकर म्यूजियम में तथा एक्वेरियम में सैर सपाटा कर रहे थे .विद्ध्यार्थियों की टोलियाँ शिक्षकों के साथ अपने अपने आई पोड के साथ अजाब्घर के कोने कोने को खगाल रहे थे :
म्यूजियम में देखा हमने
पढने वाले बच्चे /सबके सब थे अच्छे
प्रशन अनूठें बूझें /द्वार ज्ञान के खोलें
देखा उनको बुनते सपने
क्युवेक शहर की सैर सपाटे के सिलसिले में राह में जो पन्तियाँ उभरीं ,प्रस्तुत हैं :
जब जाना था करने सैर
पहले से तैयारी करली/सभी जरूरी चीजें धर लीं
नया कैमरा साथ लिया /नक्शा जानकारियाँ ले लीं
हंसी खुशी से मचले पैर
जैसे जैसे रस्ता नापा /दायें बाएं जब जब झांका
जी करता सबसे बतिआऊ /ठहरू एसा मन में आता
क्युवेक बुलाता करो न देर
चारों ओर बर्फ का डेरा /हमें बर्फ ने पग पग तेरा
वन घर खेत नदी नालों को /बच्चों की शाला को घेरा
बर्फ बनी बच्चों का खेल
सुनसान सड़क सन्नाटे में /दौड़ें गाडी फर्राटे में
देख देख होती हैरानी /कैसे जीते सब जाड़ें में
जिजीविषा लेती है खैर !
[मान्त्रीयल :लातूर वेल्वेदर होटल :१६.१२.२०११]

Sunday, January 1, 2012

भारतेंदु श्रीवास्ताव्
64.Longswood Drive
Toranto,ontario
canada,MIV3A3
sribhartendu@yahoo.com
416 291 5957
मेरा डॉ .जयजयराम आनन्द  से २००३ मेंपरिचय  हुआ ,जब उनका डेट्रायट से प्रो. रघुवीर प्रसाद विक्टोरिया के संदर्भ से फोन आया और उन्होंने बताया कि हम लोग भोपाल से आये हैं और अपने बेटे संदीपके पास प्रवास पर हैं इलाहाबाद सेएम् .एड .किया है,मैनपुरी के निबासी हैं ` .उनके मुख से मैनपुरी ,इलाहाबाद और भोपाल कानाम सुनकर आत्म्मीय ता के भाव जाग उठे .भोपाल में मेरे मौसेरे भाई पोलिस में थे और बहीं रह रहें हैं ,इलाहाबाद कि मेरी धर्मपत्नी है ,डॉ रघुवीर प्रसाद कीपत्नी डॉ शशि की घनिष्ट ,मैनपुरी में मेरे पिताजी स्टेशन मास्टर थे अतः मैंने क्रस्चियन  स्कूल में पढ़ाई की डॉ आन्नद भी उन्ही दिनों गवरर्मेंट इंटर कालिज के सर्व्श्रेष्ठ छात्रों mने जाते थे और मैं भी अपनी कक्षा में प्रथम आता था फिर तो आये दिन फोन  से चर्चा होने लगी .उन्होंने अमरीका और कनाडा की साहित्यिक गति विधियों से जुड़ने की बात कही तो मैनें उन्हें विश्वा का पता दिया जिसमें उन्होंने रचनाएं भेजी जो प्रकाशित हुईं .बाद में मैनें टोरंटो में होने बाले साहित्यिक कार्यक्रमों   की सूचना दी तो वे अपने बेटे व् पत्नी के साथ नियाग्रा फाल तथा टोरोंटो कनाडियन टावर की सैर करते  हुए मेरे निवास पर पधारे .हम दोनों उनका  स्वाग् त कर अविभूत थे .कुछ समय बाद टोरंटो के भारतीय प्रवासी  साहित्यकार भी आगये  सबसे घुलमिलकर घर परिवार देश साहित्य की चर्चा हुई और हम सब लोग राधा कृषण मंदिर पहुचे .
साहित्यिक  कार्यक्रम स्वर्गीय डॉ ब्रजराज कश्यप,डॉ भारतेंदु श्रीवास्तव और डॉ आनन्द के विशिष्ट आथित्य में शुरू हुआ .पहले लोकल साहित्यकारों ने काव्य पाठ किया .जब संचालिका श्रीमती कश्यप ने डॉ आनन्द का परिचय  दिया तो सभी ने करतल ध्वनि से स्वागत किया .डॉ कश्यप ने उनकी सधः प्रकाशित  सकलन ,घर के अन्दर  घर,का लोकार्पण किया फिर उनसे काव्य पाठ का अनुरोध क्या गया उन्होंने परिचय देते हुए कहा :
में व्यथित हूँ नहीं स्वयं  की व्यथा से /मैं तृषित हूँ नहीं स्वयं की तरशा  से
धरती के जन जन का व्यथा गीत गाता हूँ /एक एक आह में नवीन गीत पाताहूँ
खुशी में श्रोतायों ने खूब तालियाँ बजायीं पर जब उन्होंने दोहों की शुरूआत की फिरतो सभागार तालियों की गडगडाहट  से गूज उठा :
टोरंटो में जो सूना भारत का संबाद/मेरे दोहे कर रहे उन सबका अनुवाद
मत सोचो कैसा लगा ,टोरंटो में आज /हँसी खुशी ने रख दिया मेरे सर पर ताज
जीवन भर भूलूँ नहीं टोरंटो की शाम/स्वर्ण  अक्षरों में लिखा मेरा सबका नाम
मन में मेरे बस गया टोरंटो का नाम /सचमुच में एसा लगा स्वर्ग सुखों का धाम
उन्होंने नियाग्रा फाल्स पर जो दोहे पढ़े वह उनके दोहा संग्रह ,'अमरीका में आनंद 'के पृष्ट २७-२८  पर अंकित हैं जो उनके बेटे संदीप ने भेजी  .काव्यपाठ के बाद वे डेट्रायट चले गए.
बीच बीच में तीज त्योहारों पर इंटरनेट पर संपर्क होता रहा .अभी वे पुनः अमरीका कनाडा प्रवास पर हैं आजकल साईट जॉन में सितम्बर से पवास पर हैं और उन्होंने बताया की उनपर हिंदी की पत्रिका साहित्य सागर विशेषांक निकाल रही है अतः उनके आग्रह  पर यह सब लिखते हुए अपार ख़ुशी का आनन्द लूट रहाहूं .
मुझे कहने में गर्व हो रहाहै की दूर रहकर भी अपने मित्रों को भूलते नहीं ,वे एक सफल कवी लेखक हैं .दोहे  लिखने में वे सिद्ध हस्त है जो उनके दोहा संग्रहों :बूद बूँद आनन्द ,अमरीका में आनन्द ,हास्य योग आनन्द ' से सिद्ध होता है.
अंत मुझे ,उनके अपने संपर्क पर गर्व है .जब जब उनसे बात होती है तो मैनपुरी ,इलाहाबाद,भोपाल और भारत की यादें ताजा हो जाती हैं .उनके काव्य सृजन व् साहित्यिक  योगदान के लिए बधाई देना चाहूंगा .
भारतेंदु श्रीवास्तव
टोरंटो