Friday, July 20, 2012

 साहित्य मंजरी का मार्च जून 2012का अंक जैसे ही हाथ लगा ,उससे आद्योपांत गुजरने  का लोभ संवरण न कर  सका।उसकी साज- सज्जा और अंतर्बस्तु ने मन मोह लिया .विशेष रूप से दोहों के सम्बन्ध में प्रथम गवेषानात्मक तथ्यों ने अनेक भ्रमों कको दूर किया।साथ ही उनके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी तथा उनकी  हर प्रष्ठ  पर छाप पाठक को हर दोहा कंठस्थ करने को कहता है .नए पुराने साहित्यकारों की उपस्थित उत्साह वर्धक है .नवांकुरित पौधा बट वृक्ष का रूपले .हार्दिक शुभकामनाएं !
'हास्य् योग  आनंद' के  कुछ दोहे  शायद आपका ध्यान खींच सकें :
मधुर अधर मुस्कान जब ,मन को कर ले कैद /दबा काम करती नहीं ,माथा ठोके वैद

अधरों की मुस्कान में ,गीता वेड पुराण /पढने वाले कुछ कहें होगें चतुर सुजान

राई सी मुस्कान से ,पर्वत जैसी पीर / पानी पानी बन झरे जैसे निर्झर नीर

पानी पानी ना रहा ,सर सरिता नल कूप /अधरों की मुस्कान को चाट रही है धू प
डाक्टर जयजयराम आनंद
ई 7/70 प्रेम निकेतन ,आनंद प्रकाशन ,अरेरा कोलोनी ,भोपाल मप्र 462016
2467604/098/08517912504

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