Saturday, May 12, 2012

अखिल भारतीय भाषा साहित्यसम्मलेन के तत्वावधान मेंदिनांक 12.5.12कअश्वनी श्रीवास्तव चित्रांश महाविद्यालय के सौजन्य से डॉ राममोहन तिवारी आनंद की अध्यक्षता ,डॉ रामवल्लभ
आचार्य के मुख्य आतिथ्य मेंमाँ पर केन्द्रित साहित्य गोष्ठी का शुभारम्भ करने से पहले डॉ जयजयराम आनंद ने 
साहित्यकारों का स्वागत करते हुए स्वागत  गीत पढ़ा :स्वागत सौ सौ बार सभी  का ,स्वागत सौ सौ बार और विषय 
का शु भारम्भ  करते हुए दोहे पढ़े :
माँ की ममता के लिए ,मिले किसे उपमान /खोज खोज कर थक गये ,तुलसी  सूर महान
माँ की महिमा जगत में .अद्भुत अपरम्पार /माँ के बिना न चल सके जीवन  क्रम संसार
              इसके बाद विश्वनाथ शर्मा विमल ने ,'दू ध  पिया जिस मैया का 'बिहारी लाळ सोनी अनुज ने माँ महांन  होती है ,वर्मा रामभरोसे ने अपने हाय्कुओं में माँ ,रामवल्लभ आचार्य ने मधुर गीतों में ,डॉ राममोहन तिवारी आनंद ने अपने पुराने गीतों में माँ का गुणगान किया
डॉ सुशील गुरु ने अपना माँ पर गीत पढकर वाह वाह बटोरी .डॉ आनंद ने माँ पर नवगीत ,बिन बीमारी घर बीमार ,पढ़ा
जिसका करतल ध्वनी से स्वागत हुआ .गोष्ठई का सफल संचालन अनुज ने किया .डॉ आचार्य ने सबका आभार व्यक्त
किया .
  डॉ जयजयराम आनंद के माँ पर केन्द्रित नवगीतों से गुजरें व् अपनी प्रतिक्रियायों से अवगत कराएं :

Tuesday 19 October 2010

भला हुआ जो अम्मा तुमने ...

भला हुआ जो अम्मा तुमने
राह स्वर्ग की पकड़ी
लम्बी बीमारी ने तुमको
बना दिया था ठठरी
सब दुनिया भौचक्की होती
देख दबाएँ गठरी
तन्त्र मन्त्र -लुकमान डाक्टर
सबने छोडी आशा
तन की गाड़ी मन के पहिये
छोड़ चुके थे पटरी
दूभर था खाट छोड़ना भी ,थाम थाम कर लकड़ी
आठ आँसू रोते थे
कुत्ता बिल्ली डेली
घर आँगन बुनता सन्नाटा
तुमको देख अकेली
दशों दिशाएँ अवनी अम्बर
छोड़े हाल पूंछना
तरस गईं थीं बतियानें को
खटिया लेटे लेटे
निखुराते थे बहुएं बेटे ,छुटकी हरदिन झगड़ी
सिखलाया था जिनको तुमने
स्वर्णिम सपने बुनना
छोटा पड़ता था घर आँगन
कमरा अपना अपना
आह कराह खांसना असमय सबको
सबको अखरा करता
निश्चित था डौगी पूसी को
खाना पानी फिरना
जब पहुँचीं आश्रम तुम अम्मा ,मनी दिवाली तगड़ी
[भोपाल:१०.१०.२०१०]

Wednesday 2 July 2008

कामधेनु

मलयानिल कानों में कहती
मेरी अम्मा सोनचिरैया
खात पकड़ते ही अम्मा के
सारा घर गम पीता
जैसे सूरज के ढलते ही
सारा जग तं जीता
अम्मा चलती घर चलता था
घर कश्ती की कुशल खिवैया
बात बतंगड़ जब बनती हो
कैसे दफना देना
सैनन नैनन सब समझाना
क्या है लेना- देना
जो मांगो सो वो देती थी
कामधेनु की वंशज मैया
सम्बन्धों की कुशल चितेरी
पग-पग उन्हें निभाया
जद जमीन तनमन से सिंची
माथे से सदा लगाया
परम्परा की सिरजन हारी
ढल जाती थी झटपट मैया
[०७.०८.०७]

No comments:

Post a Comment